डीएम और कलेक्टर में अंतर

परिचय:
भारत में प्रशासनिक व्यवस्था को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए अधिकारियों के विभिन्न पद बनाए गए हैं। इनमें से दो प्रमुख पद हैं जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) और कलेक्टर। अक्सर लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है कि डीएम और कलेक्टर में क्या अंतर है। इस लेख में हम इन दोनों पदों के कार्य, जिम्मेदारियां और उनके बीच के मुख्य अंतर को समझेंगे।

जिला मजिस्ट्रेट (डीएम):
डीएम का पूरा नाम ‘डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट’ है। यह एक प्रशासनिक अधिकारी होता है जो जिले में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार होता है।

डीएम के प्रमुख कार्य:

  1. कानून और व्यवस्था बनाए रखना:
    जिले में शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  2. आपातकालीन स्थिति का प्रबंधन:
    प्राकृतिक आपदा, दंगा, या अन्य किसी संकट की स्थिति में राहत कार्य करना।
  3. मजिस्ट्रेट का कार्य:
    धारा 144 लागू करना, कर्फ्यू लगाना, और अन्य मजिस्ट्रियल कार्य।
  4. चुनाव प्रबंधन:
    जिले में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना।

कलेक्टर:
कलेक्टर का मुख्य कार्य जिले में राजस्व संग्रहण और भूमि प्रबंधन से संबंधित होता है। यह पद मूल रूप से ब्रिटिश शासन के समय शुरू हुआ था, जब कलेक्टर को राजस्व संग्रह के लिए जिम्मेदार बनाया गया था।

कलेक्टर के प्रमुख कार्य:

  1. राजस्व संग्रहण:
    जिले में भूमि कर, जल कर, और अन्य कर एकत्र करना।
  2. भूमि प्रशासन:
    भूमि रिकॉर्ड का प्रबंधन और विवादों का समाधान।
  3. सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन:
    सरकारी योजनाओं को जमीनी स्तर पर लागू करना।
  4. आपदा प्रबंधन:
    कृषि से संबंधित आपदाओं जैसे सूखा और बाढ़ की स्थिति में राहत कार्य।

डीएम और कलेक्टर में मुख्य अंतर:

पहलूडीएम (जिला मजिस्ट्रेट)कलेक्टर
प्रमुख कार्यकानून और व्यवस्था बनाए रखनाराजस्व संग्रहण और भूमि प्रबंधन
केंद्रित क्षेत्रकानून व्यवस्था, आपदा प्रबंधन, मजिस्ट्रियल कार्यभूमि रिकॉर्ड, कर संग्रह, सरकारी योजनाएं
भूमिकाशांति और सुरक्षा सुनिश्चित करनाराजस्व और प्रशासनिक कार्यों की देखरेख
उत्पत्तिस्वतंत्रता के बाद भारतीय प्रशासन में शामिल हुआब्रिटिश काल में राजस्व संग्रहण के लिए शुरू हुआ
अधीनस्थ अधिकारीपुलिस, मजिस्ट्रेट, और जिला प्रशासनतहसीलदार और राजस्व अधिकारी

संबंध:
हालांकि डीएम और कलेक्टर अलग-अलग कार्य करते हैं, लेकिन कई बार एक ही व्यक्ति इन दोनों पदों की जिम्मेदारी निभाता है। इसे “डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर-कम-मैजिस्ट्रेट” कहा जाता है।

निष्कर्ष:
डीएम और कलेक्टर दोनों ही जिले के प्रशासन का अभिन्न हिस्सा हैं। डीएम मुख्य रूप से कानून और व्यवस्था बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित करता है, जबकि कलेक्टर राजस्व और भूमि प्रबंधन से संबंधित कार्य करता है। दोनों पदों की जिम्मेदारियां भले ही अलग हों, लेकिन उनका उद्देश्य जिले का समग्र विकास और प्रबंधन सुनिश्चित करना है।