बैंकिंग प्रणाली किसी भी देश की आर्थिक संरचना का मुख्य आधार होती है। भारत में बैंकिंग का इतिहास बहुत पुराना और समृद्ध है। अगर बात करें भारत के पहले बैंक की, तो यह जानना बेहद दिलचस्प है कि भारतीय बैंकिंग प्रणाली की नींव 18वीं शताब्दी में पड़ी थी।
भारत का पहला बैंक
भारत का पहला बैंक “बैंक ऑफ हिंदुस्तान” था, जिसकी स्थापना वर्ष 1770 में हुई थी। इसे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के समर्थन से कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) में स्थापित किया गया था। यह बैंक एलेक्जेंडर एंड कंपनी द्वारा संचालित होता था। हालांकि, यह बैंक अधिक समय तक संचालित नहीं हो सका और 1832 में बंद हो गया।
बैंक ऑफ हिंदुस्तान का महत्व
- यह बैंक भारत में संगठित बैंकिंग प्रणाली की शुरुआत का प्रतीक था।
- इसके द्वारा पहली बार भारत में एक संगठित तरीके से वित्तीय सेवाएं दी गईं।
- इसने भारत में अन्य बैंकों की स्थापना के लिए प्रेरणा दी।
बैंकिंग का विस्तार और अन्य प्रमुख बैंक
बैंक ऑफ हिंदुस्तान के बाद भारत में कई अन्य बैंक स्थापित हुए, जैसे:
- जनरल बैंक ऑफ इंडिया (1786)
यह भारत का दूसरा बैंक था, लेकिन यह भी लंबे समय तक टिक नहीं सका। - बैंक ऑफ बंगाल (1806)
इसे प्रेसीडेंसी बैंक के रूप में स्थापित किया गया था और यह भारत का पहला चार्टर्ड बैंक था। - बैंक ऑफ बॉम्बे (1840) और बैंक ऑफ मद्रास (1843)
इन दोनों बैंकों ने भारत में बैंकिंग प्रणाली के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना
भारत में आधुनिक बैंकिंग प्रणाली का मुख्य केंद्र भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) है, जिसकी स्थापना 1 अप्रैल 1935 को हुई थी। यह भारत का केंद्रीय बैंक है और देश की आर्थिक नीतियों को नियंत्रित करता है।
भारत में बैंकिंग का वर्तमान स्वरूप
आज भारत में सार्वजनिक, निजी और सहकारी बैंकों का एक विस्तृत नेटवर्क है। डिजिटल बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग और इंटरनेट बैंकिंग के माध्यम से बैंकिंग सेवाएं अब आम आदमी की पहुंच में हैं।
निष्कर्ष
“बैंक ऑफ हिंदुस्तान” भारत में बैंकिंग प्रणाली की शुरुआत का पहला कदम था। हालांकि यह बैंक ज्यादा समय तक नहीं चल सका, लेकिन इसने भारत में वित्तीय सेवाओं के विकास का मार्ग प्रशस्त किया। इसके बाद कई बैंकों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। भारत की बैंकिंग प्रणाली आज विश्व की सबसे मजबूत प्रणालियों में से एक है।