स्वतंत्र भारत में अबतक कुल कितने लोगों को फांसी दिया जा चुका है? पढ़िए नाम

स्वतंत्र भारत में फांसी की सजा एक संवेदनशील और चर्चा का विषय रही है। भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत यह सजा केवल सबसे गंभीर मामलों में दी जाती है। फांसी की सजा को “दुर्लभतम में दुर्लभ” (rarest of the rare) मामलों के लिए रखा गया है, और इसे न्यायपालिका द्वारा तभी लागू किया जाता है जब कोई अन्य विकल्प उपलब्ध न हो।

फांसी की सजा का कानूनी प्रावधान

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 प्रत्येक व्यक्ति को जीवन का अधिकार प्रदान करता है। हालांकि, यह अधिकार न्यायिक प्रक्रिया के तहत छीना जा सकता है। फांसी की सजा भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या), 376AB (12 वर्ष से कम उम्र की लड़की से बलात्कार), और 121 (देशद्रोह) जैसे मामलों में दी जाती है।

स्वतंत्र भारत में फांसी की सजा के आंकड़े

स्वतंत्र भारत में अब तक लगभग 750 से अधिक लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई है। हालांकि, इनमें से अधिकांश मामलों में सजा पर अमल नहीं हुआ और उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट द्वारा सजा माफ कर दी गई।

अमल में लाई गई फांसी की सजाएं:

स्वतंत्र भारत में फांसी की सजा दुर्लभतम मामलों में ही दी गई है। ऐसे मामलों की संख्या सीमित है, और इनमें शामिल प्रमुख व्यक्तियों के नाम निम्नलिखित हैं:

  1. नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे (1949): महात्मा गांधी की हत्या के दोषी।
  2. महावीर सिंह (1957): अपने परिवार के सात सदस्यों की हत्या के दोषी।
  3. धनंजय चटर्जी (2004): 14 वर्षीय लड़की के बलात्कार और हत्या के दोषी।
  4. अफजल गुरु (2013): 2001 में भारतीय संसद पर हमले के दोषी।
  5. याकूब मेमन (2015): 1993 के मुंबई बम धमाकों में भूमिका के लिए दोषी।
  6. मुकेश सिंह, पवन गुप्ता, विनय शर्मा, और अक्षय ठाकुर (2020): दिल्ली में 2012 के निर्भया गैंगरेप और हत्या मामले के दोषी।

यह सूची पूर्ण नहीं है, लेकिन इनमें वे प्रमुख मामले शामिल हैं जिनमें फांसी की सजा दी गई। ध्यान देने योग्य है कि स्वतंत्र भारत में किसी महिला को फांसी नहीं दी गई है।

फांसी के मामलों में कमी क्यों?

फांसी की सजा देने की प्रक्रिया समय और कानूनी समीक्षा पर आधारित है। उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका और दया याचिका दाखिल करने का प्रावधान दोषियों को फांसी से बचने का अवसर देता है।
इसके अतिरिक्त, मानवाधिकार संगठनों और समाज के कुछ वर्गों द्वारा फांसी की सजा के खिलाफ विरोध भी इसे कम कर रहा है।

भारत में फांसी की मौजूदा प्रक्रिया

भारत में फांसी का तरीका “फांसी पर लटकाना” है। यह प्रावधान भारतीय जेल नियमावली के तहत किया गया है।
फांसी की सजा के लिए राष्ट्रपति के पास दोषी की दया याचिका स्वीकार करने या अस्वीकार करने का अधिकार है।

विवाद और चर्चा

फांसी की सजा को लेकर विभिन्न दृष्टिकोण हैं।

  1. पक्ष में:
    • यह गंभीर अपराधों के लिए एक मजबूत निवारक है।
    • पीड़ित के परिवार को न्याय की भावना मिलती है।
  2. विपक्ष में:
    • कुछ मामलों में निर्दोष लोग भी सजा भुगत सकते हैं।
    • मानवाधिकार संगठनों का तर्क है कि यह बर्बरता का प्रतीक है।

निष्कर्ष

स्वतंत्र भारत में फांसी की सजा का उपयोग न्याय प्रणाली के कठोरतम रूप में किया गया है। हालांकि, इसके उपयोग में सावधानी बरतने और न्यायिक प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की आवश्यकता है।
आंकड़ों के अनुसार, भारत में फांसी की सजा के मामले कम होते जा रहे हैं, लेकिन यह सजा आज भी सबसे गंभीर अपराधों के लिए आरक्षित है।

(नोट: यह लेख आंकड़ों और कानूनी जानकारी पर आधारित है। सटीक आंकड़े विभिन्न स्रोतों और वर्षों के अनुसार भिन्न हो सकते हैं।)